भारत की पहली कोरोना वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को तेज़ी से लॉन्च करने के लिए इंडियन कॉउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने क्लीनिकल ट्रायल करने वाली संस्थाओं से गति तेज़ करने को कहा है। इसके चलते संसथान ने कहा है की 7 जुलाई से क्लीनिकल ट्रायल शुरू करना चाहिए ताकि नतीजे आने के बाद 15 अगस्त तक वैक्सीन लॉन्च की जा सके। बता दे की जानवरों पर इसका ट्रायल कामयाब रहा है। हालांकि, अंतिम परिणाम सभी क्लीनिकल ट्रायल कामयाब होने पर ही निर्भर करेगा।
हैदराबाद की फार्मा कंपनी भारत बायोटेक ने इसे आईसीएमआर और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के साथ मिलकर बनाया है जिसे हाल ही में इंसानों पर क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी मिली है । यह मंज़ूरी जानवरों पर ट्रायल होने के बाद मिली है। ये ट्रायल इसी महीने शुरू हो रहे हैं। भारत बायोटेक के मुताबिक, वैक्सीन को हैदराबाद के जीनोम वैली के बीएसएल-3 (बायो-सेफ्टी लेवल 3) हाई कंटेनमेंट फैसिलिटी में तैयार किया गया है।
उप्र, बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 9 राज्यों के 12 इंस्टीट्यूट में वैक्सीन का ट्रायल किया जाना है | पहले फेज का ट्रायल कामयाब रहा है, इंसानों पर परीक्षण के लिए इसे हाल ही में मंजूरी मिली है |
इसी के तहत आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल बलराम भार्गव ने वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक और इसका क्लीनिकल ट्रायल करने वाली 12 संस्थाओं को चिट्ठी लिखी है जो आंध्रप्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु और ओडिशा में हैं।
हालाँकि यह गौर करने योग्य है की यह पहली चिट्ठी नहीं है जो आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल ने इस सम्बन्ध में लिखी है इससे पहले आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल का भारत बायोटेक को लिखा एक पत्र लीक हुआ था। इसमें भी वैक्सीन के 15 अगस्त तक तैयार होने की बात कही गई थी। पत्र में कहा गया था कि आदेश का पालन नहीं करने को बहुत गंभीर माना जाएगा, इसलिए आपको सलाह है कि आप इस प्रोजेक्ट को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दें और तय समय में इसे पूरा करें। इस पर आईसीएमआर ने कहा था कि इस पत्र का उद्देश्य परीक्षण में तेजी लाना था, ताकि नतीजे जल्द मिल सकें। वैक्सीन के सार्वजनिक उपयोग में तो काफी समय लगेगा।
एक और जहाँ आईसीएमआर के डायरेक्टर गति तेज़ करने के लिए कह रहे है वही दूसरी और एक्सपर्ट्स चेतावनी देते हैं कि समय से पहले वैक्सीन रिलीज करना फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। 1955 में ओरिजिनल साल्क पोलियो की वैक्सीन को बनाने में जल्दबाजी दिखाई गई थी, लेकिन इससे कोई अच्छे परिणाम नहीं मिले। बड़े स्तर पर वैक्सीन के निर्माण में हुई गड़बड़ी के कारण 70 हजार बच्चे पोलियो की चपेट में आ गए थे। 10 बच्चों की मौत हो गई थी।