राम भिया। अब सूबे तो सब उठ के आफिस चल देते है या फिर अपने अपने काम पे निकल जाते है, पर कभी आपने सोचा है की एक आम इन्दोरी, जो सर से पाउ तक इंदौर के प्रेम में डूब चुका हो, वो कैसे अपना दिन चल्लू करके ख़तम करता है? नी ना? तो खिदमत में पेस है, एक इन्दोरी, यानी की मेरा दिन।
तो अपन तो क्या उठने के बाद पाउच फाड़के मुँह में गपक लेते है, फिर नीचे जाके भास्कर चिये अपन को। उसको सरसराती निगाहों से देख के अपन चिल्ला देते है की पोहेतैयार रखो अपन फिरेस होके आते है। बस पोहे खाने के बाद सेउ को मुट्ठी भर मुँह में भरके निकल लेते है अपन काम करने वास्ते।
अब क्या सीधे काम पे पहुचने का मजा नी है, तो रस्ते में रुक के, इदर उदर टाप के अपन जलेबी की गंध ले लेते है, की भिया कही भी उतरती दिख जाए, तो वही, वही गाडी रोक के बोल देते है की १५० ग्राम दे दे। फिर आत्मा को सुकून देती गरम जलेबी का लुत्फ़ उठाते आस पड़ोस के लोगो को राम करके फिर निकलते है। यदि बुधवार है तो सीधे खजराना की तरफ तीर जैसे जाके वहाँ भगवान् के चरणों में गिर जाते है, ओर यदि काम वाली जगोह टी आई के सामने से जाती है, तो फिर गाडी रोक के उसको भी प्रणाम देते है। क्या है भिया की कई नी लगे बम्बई और दिल्ली के माल अपने टी आई के अग्गे.
अब काम पे पहुचने के बाद शाम तक ७-८ कप चाय ढीली हो जाती है ओर दुपेर में कचोरी ओर समोसे भी अलग से दाब लेते है। फिर जब घर की ओर निकलते है, तोकुछ भी पिलान बन सकता है भिया, मतलब छप्पन या सराफा कुछ भी। पेट तो क्या अपना खल्ली ही रेता है ओर अपन तो ठेरे इन्दोरी, कुछ भी कही भी खिला दो, अपनतो दाब जाएंगे। पर इसका मतलब ये नी है की बाहर से खाके गए तो घर पे नी खाएंगे, नी। घर पे खाने का अनादर नी करते अपन। घर पे भी खाना दाब के फिर गली मेंनिकल जाते है अपन। अब बिन पंचायत करे सोए तो क्या सोए भिया?! फिर उस गल्ली में पूरी दुनिया पे राये देके पलंग पे कूदते है, ओर पोहे जीरावन सेउ के सपने लेतेहुए सो जाते है।
तो ये है अपना दिन। तुम्हारा कैसा मामला जमता है तुम भी कमेंट में पेल दो।